सोमवार, 26 जनवरी 2009

क्यों बनाया गया ये ब्लॉग ?

उमेश चतुर्वेदी
चीनी भाषा को मंदारिन कहते हैं। मंदारिन का एक मतलब होता है कठिनतम। शायद दुनिया की ये सबसे कठिनतम भाषा है। कहा तो ये जाता है कि जिस चित्र लिपि में लिखा जाता है - उसके करीब एक लाख वर्ण होते थे। जिनमें से करीब छह हजार ही इन दिनों प्रचलित हैं। इस मंदारिन में भी महिलाओं के बीच आपसी संवाद के लिए एक और भाषा प्रचलित थी। साफ है कि इस भाषा का इस्तेमाल अपनी उन बातों के लिए करती थीं, जिसे वे पुरूषों को बताना नहीं चाहती थीं। जिस तरह हजारों साल तक हमारे यहां वेद श्रुति और स्मृति परंपरा में चलते रहे हैं, वैसे ही ये भाषा बिना किसी लिपि और लेखन के पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रही है। लेकिन इन दिनों चीन के विद्वान इन दिनों चिंतित हैं। उन्हें इस भाषा के खात्मे का अंदेशा सताने लगा है। यही वजह है कि इन दिनों इस भाषा को बचाने के लिए कोशिश शुरू की जा रही है। जिस भाषा का इस्तेमाल और खोज पुरूषों से बचाव और छिपाव के लिए होता था - समय का फेर देखिए कि आज उसे बचाने के लिए पुरूष ही आगे आ रहे हैं।
कहना ना होगा कि कुछ यही हाल अपनी भोजपुरी भाषा का भी रहा है। उसका लिखित साहित्य अभी कुछ साल ही पुराना है। हालांकि कुछ लोग कबीर और तुलसी में में भोजपुरी को ढूंढ़ लेते हैं। ये सच है कि कबीर वाणी में भोजपुरी के शब्द हैं। लेकिन भाषा के तौर पर उसका इस्तेमाल अभी कुछ साल ही पुराना है। भोजपुरी भाषी इलाकों में अभिजन की चिंताओं, शिक्षा, संस्कृति और शासन का ज्यादातार माध्यम हिंदी रही है। लिहाजा पिछले पच्चीस - तीस साल में जो भोजपुरी विकसित हो रही है या प्रचलन में है, उससे ठेठ भोजपुरी के शब्द खत्म या लुप्त होते जा रहे हैं। ये ब्लॉग उन्हीं शब्दों को खोजने और बचाने की कोशिश है। इसमें आप सब भोजपुरी भाषियों का सहयोग अपेक्षित है। उम्मीद है आप अपनी नस-नस में बहने वाली इस धार को बचाने के इस महती यज्ञ में जरूर साथ देंगे।